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मेरा हाल देखकर मोहब्बत भी शर्मिदा है, कि ये शख़्स सब कुछ हार गया फिर भी जिन्दा हैं |
क़ाश कोई ऐसा हो, जो गले लगा कर कहे, तेरे दर्द से, मुझे भी तकलीफ होती है |
मुस्कुराती माँ है, सुकून हमें मिलता है |
"हालात" कह रहे हैं मुलाकात "मुमकिन" नहीं, "उम्मीद" कह रही है थोड़ा "इंतज़ार" कर !
सुबह जल्दी सिर्फ तीन लोग ही उठते हैं, माँ, मेहनत और मजबूरियाँ !!
सीधे इंसान को कभी धोखा मत देना क्योंकि, सीधे इंसान का जवाब ऊपर वाला टेढ़े तरिके से देता है...
फर्क नहीं पड़ता वो कितनी पढ़ी लिखी है, माँ है वो मेरी, मेरे लिए सबसे बढ़ी है.
सिर्फ प्यार करना काफ़ी नहीं है, कुछ बनना भी पड़ता है ज़िन्दगी में इश्क़ पाने के लिए.
ए-खुदा एक आईना ऐसा भी बना दे जो चेहरा नहीं, नियत दिखा दे |
मुझे टूटे हुए पत्तो ने सिखाया है अगर बोझ बन जाओ तो अपने भी गिरा देते है..
याद आने की वज़ह बहुत अजीब हैं, तुम्हारी तुम वो गैर थे जिसे मैंने एक पल में अपना माना
तूफान में कश्तियाँ और घमंड में हस्तियाँ डूब जाती हैं...
थोड़ा सुकून भी ढूँढिये जनाब ये जरूरतें तो कभी ख़त्म नहीं होगी
किसके लिए ज़न्नत बनाई हैं तूने ए-खुदा कौन हैं यहाँ जो गुनाहगार नहीं |
हम अब कैसे करें तेरे प्यार को खुद के काबिल जब हम आदतें बदलतें हैं, तुम अपनी शर्तें बदल देते हो।
कुछ ऐसे हो गए हैं इस दौर के रिश्ते, जो आवाज तुम ना दो तो बोलते वो भी नहीं।
ख़ामोशी भी इक नशा है, आज कल मैं नशे में हूं
जहाँ कश्तियां जिद्द पर हों,वहाँ तूफान भी हार जाते हैं...
बस ख़तम कर ऐ बाज़ी-ए-इश्क ग़ालिब, मुकद्दर के हारे कभी जीता नहीं करते .
वास्ता नहीं रखना तोह नज़र क्यों रखते हो ! किस हाल मैं ज़िंदा हूँ खबर क्यों रखते हो !
स्कूल का वो बैग फिरसे थाम दे माँ, ऐ जिन्दगी का बोज उठाना मुश्किल है .
और कितना बर्बाद करोगे उसे,वो आज भी बोलता है "ज़रूरत पड़े तो बताना"
अफ़सोस तोह हैं मुझे तेरे बदल जाने का मगर तेरी कुछ बातों ने मुझे जीना सीखा दिया.
कुदरत का केहर भी ज़रूरी है साहेब, हर कोई खुद को खुदा समझने लगा था.
इंसान तारों को तब देखता है, जब ज़मीन पे कुछ खो गया हो
शादी उसी से की जाती है, जिससे दिल राज़ी हो घर वाले नहीं....
फिर एक बार मोहब्बत करनी है तुमसे, लेकिन इस बार बेवफाई हम करेंगे .
कुछ आएंगे कुछ जायेंगे, जो ठहर गया बस वही तुम्हारा
उनकी पलकों से शुरू हुई दास्तान-ए-मोहब्बत, जिनका झुकना भी कयामत जिनका उठना भी कयामत |
क्या लिखूं तेरी तारीफ-ए-सूरत में यार, अल्फ़ाज़ कम पड़ रहे हैं तेरी मासूमियत देखकर |
सच्ची मोहब्बत तो रुह से होती है....जिस्म तो बस प्यार जताने का एक ज़रिया होता है |
इश्क़ दर्द का वो तूफ़ान है जो दिलों कि बस्तियों को तबाह कर देता है |